सतीश ठाकुर
मंडी। छोटी काशी मंडी में होली का पर्व को धूमधाम से मनाया गया। मंडी के सेरी मंच में सैकड़ों लोग एक दूसरे को गुलाल लगाते नजर आए। यहां पर सुबह 11 बजे से होली की सेलिब्रेशन शुरू हो गई जो कि दोपहर बाद तक चली। डीजे की धुन पर लोग खूब थिरके । लोगों ने एक दूसरे को इस पर्व की बधाई दी। मंडी में सदियों से ही होली एक दिन पहले मनाई जाती है। इसके पीछे कोई खास वजह नहीं है। राजशाही के दिनों से ही यहां एक दिन पहले लोग गुलाल लगाकर इसे मनाते हैं। इसे देखते हुए मंडी में हर साल लोकल होलीडे अनाउंस की जाती है, ताकि सभी लोग इस पर्व को हर्षोल्लास से मना सके। छोटी काशी में सभी त्योहार शास्त्र अनुसार मनाए जाते हैं। अगर ज्योतिष गणना की बात करें तो उसके अनुसार भी होली का त्योहार हर वर्ष फाल्गुनी पूर्णिमा को मनाया जाता है। ज्योतिषाचार्य पंडित यशपाल शर्मा ने बताया कि इस बार फाल्गुणी पूर्णिमा 13 मार्च को सुबह 10 बजकर 36 मिनट पर शुरू हो रही है, जोकि 14 मार्च को दोपहर तक चलेगी। उन्होंने कहा कि छोटी काशी में सभी त्योहार और पर्व शास्त्र अनुसार ही मनाए जाते हैं। शर्मा के अनुसार पहले जहां गली-मोहल्लों में लोग एक-दूसरे को रंगे लगाते थे, वहीं अब शहर के लोग सेरी मंच पर एकजुट होकर सामूहिक तौर पर इस त्योहार को मनाते हैं। सेरी मंच पर नाचने-गाने के बाद लोग राज माधव राय मंदिर में जाकर होली मनाते हैं। दोपहर दो बजे राज माधव राय जी की पालकी नगर भ्रमण पर निकलती है जिस पर लोग गुलाल फेंकते हैं। इस पालकी के वापिस मंदिर पहुंचते ही होली का त्योहार संपन्न हो जाता है। शर्मा बताते हैं कि बदलते समय के साथ मंडी की होली में बहुत से बदलाव आए हैं जोकि समय की जरूरत भी होती है। छोटी काशी मंडी शैव और वैष्णव परंपरा वाला इकलौता शहर है। यहां भगवान शिव और भगवान श्रीकृष्ण को प्रमुख रूप से पूजा जाता है। होली का त्योहार इन्हीं से संबंधित है। ऐसे स्थान पर होली का त्योहार सबसे पहले मनाया जाना स्वाभाविक और अनिवार्य। मंडी की होली की खासियत यह है कि यहां अनजान लोगों पर जबरदस्ती रंग नहीं डाला जाता। यदि कोई होली नहीं खेलना चाहता तो उस पर जबरदस्ती रंग नहीं लगाया जाता। मंडी में लोग सुबह ही होली खेलने के लिए टोलियां बनाकर शहर के मुख्य बाजारों में पहुंचते हैं। आसपास के गांव की महिलाएं भी बाजार में होली खेलने आती हैं। मंदिर के प्रांगण में बर्तनों में घोला जाता है रंग मंडी के माधव राय मंदिर के प्रांगण में पीतल के बड़े बर्तनों में रंग घोला जाता था। बताया जाता है कि यहां राजा अपने दरबारियों के साथ होली खेलते थे। वे घोड़े पर सवार होकर प्रजा के बीच भी आते थे। आज भी यहां यह परंपरा निभाई जा रही है। मंडी में होली का उत्सव शाम के समय माधोराय की जलेब निकलने के बाद समाप्त हो जाता है। हिमाचल की छोटी काशी मंडी में एक दिन पहले ही मनाया जा रहा होली का पर्व पठावा से किया जाता है देवताओं का तिलक छोटी काशी की होली में अबीर-गुलाल के साथ प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया जाता है। चीड़ और देवदार से निकलने वाले पीले पदार्थ (पठावा) से देवताओं को तिलक लगाया जाता है। इस अवसर पर गांव की महिलाएं चावल के आटे का पकवान चिलहड़ू बनाती है। जिसे दूध और घी के साथ खाया जाता है।
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