प्रदेश सरकार को एक बड़ा झटका देते हुए हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने 6 सीपीएस को हटाने के आदेश दिए हैं। बुधवार को जस्टिस विवेक ठाकुर और जस्टिस विपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने सीपीएस नियुक्तियों को असंवैधानिक ठहराते हुए, सीपीएस एक्ट 2006 को भी रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने इन सीपीएस को मिलने वाली सभी सरकारी सुविधाओं को भी तत्काल प्रभाव से वापस लेने का निर्देश दिया है। याचिका कर्ता के वकील वीर बहादुर ने कहा कि अदालत ने सभी सीपीएस को हटाने और सीपीएस एक्ट को निरस्त करने का आदेश जारी किया है, साथ ही उनकी सभी सुविधाएं भी समाप्त करने का निर्णय लिया गया है। इस मामले में एक महिला और भाजपा के 11 विधायकों ने सीपीएस की नियुक्तियों को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिस पर आज फैसला आया है।
सुप्रीम कोर्ट भी पहुंची थी हिमाचल सरकार
इनकी याचिका पर हाईकोर्ट ने इसी साल जनवरी महीने में CPS को मंत्रियों जैसी शक्तियों का उपयोग न करने का अंतरिम आदेश सुनाया था। इस मामले में राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (SC) का भी दरवाजा खटखटा था। सरकार ने दूसरे राज्यों के सुप्रीम कोर्ट में चल रहे CPS केस के साथ क्लब करने का आग्रह किया था। मगर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के आग्रह को ठुकराते हुए हाईकोर्ट में ही केस सुनवाई का आदेश दिया था। इस केस की सुनवाई जून महीने में पूरी हो गई थी। तब हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख दिया था।
सीपीएस के फैसले पर नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर की प्रतिक्रिया
भारतीय जनता पार्टी पहले दिन से ही सीपीएस बनाने के फैसले के खिलाफ थी क्योंकि यह असंवैधानिक था और यह संविधान के विरुद्ध निर्णय था। जब 2017 में हम सरकार में थे तो हमारे समय भी यह प्रश्न आया था। तो हमने इसे पूर्णतया असंवैधानिक बताते हुए सीपीएस की नियुक्ति नहीं की थी। आज हाईकोर्ट द्वारा फिर से सरकार के तानाशाही पूर्ण और असंवैधानिक फैसले को खारिज कर दिया। हम मांग करते हैं कि इस पद का लाभ लेने वाले सभी विधायकों की सदस्यता भी समाप्त हो।
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